भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गर मैं मिलने न गया उसने बुलाया भी न था / अनीस अंसारी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:51, 10 अगस्त 2013 का अवतरण
गर मैं मिलने न गया उसने बुलाया भी न था
आँच बाक़ी थी मगर आग में शोला भी न था
शाम होते ही उभर आया थकन का एहसास
रात आराम से गुज़रेगी यह सोचा भी न था
कैसी रेतीली ज़मीं है कि नमी रूकती नहीं
बारिशें होती रहीं पर कहीं सब्ज़ा भी न था
इस तरह इशह्रनवर्दी में कटी उम्र-ए-विसाल
इस कद़र भीड़ थी चहेरों की मैं तन्हा भी न था
दफअ़तन दिल में उमड आये उदासी के सहाब
गर्मी-ए-वस्ल में मुद्दत से मैं रोया भी न था
हाल को पीते रहे शौक़ से आख़ीर तलक गुज़रे
जामों ने हमें छोड़ा हो ऐसा भी न था
टूटें पत्ते की तरह दोशा-ए-हवा पर थे ‘अनीस’
ख़ाक में खिल न सके पेड़ से रिश्ता भी न था