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गर मैं मिलने न गया उसने बुलाया भी न था / अनीस अंसारी

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गर मैं मिलने न गया उसने बुलाया भी न था
आँच बाक़ी थी मगर आग में शोला भी न था

शाम होते ही उभर आया थकन का एहसास
रात आराम से गुज़रेगी यह सोचा भी न था

कैसी रेतीली ज़मीं है कि नमी रूकती नहीं
बारिशें होती रहीं पर कहीं सब्ज़ा भी न था

इस तरह इशह्रनवर्दी में कटी उम्र-ए-विसाल
इस कद़र भीड़ थी चहेरों की मैं तन्हा भी न था

दफअ़तन दिल में उमड आये उदासी के सहाब
गर्मी-ए-वस्ल में मुद्दत से मैं रोया भी न था

हाल को पीते रहे शौक़ से आख़ीर तलक गुज़रे
जामों ने हमें छोड़ा हो ऐसा भी न था

टूटें पत्ते की तरह दोशा-ए-हवा पर थे ‘अनीस’
ख़ाक में खिल न सके पेड़ से रिश्ता भी न था