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गले से लगा लें तुम्हें / सुनीत बाजपेयी

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प्रेम के साज पर नेह के गीत का भाव कोई सुहाना सुना लें तुम्हें।
ये है अंतिम मिलन फिर मिलें न मिलें आओ प्रियवर गले से लगा लें तुम्हें।।

जानते हैं कि संभव न पाना तुम्हें, बिन तेरे जी सकेंगे कहें कैसे हम।
जिसके संग अनगिनत स्वप्न देखा किये उससे अलगाव का गम सहें कैसे हम।
गीत के बंद के छंद के वर्ण सा अपने होंठों पे हमदम सजा लें तुम्हें।

दिल के आँगन में पतझार आ जायेगा, कैसे खिल पायेगा अब कोई भी सुमन।
अब तलक जो रहा तेरे आगोश में, विरह की अग्नि में रोज तड़पेगा मन।
ये प्रणय यामिनी जाने फिर आये कब, आँख की पुतलियों में बिठा लें तुम्हें।

रह गयी अनसुनी ही हमारी कथा, प्रीति अपनी जगत को दिखी ही नहीं।
होती लिपि-बद्ध तो पढ़ भी लेता ये जग, क्या पढ़ेगा कोई जब लिखी ही नहीं।
दो बदन एक मन ही रहे हम सदा, रूठिये, इक दफा तो मना लें तुम्हें।