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"गवाही / मणि मधुकर" के अवतरणों में अंतर

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मोम कुछ दरारों में गिरकर शासन की आत्‍मकथा तक
 
मोम कुछ दरारों में गिरकर शासन की आत्‍मकथा तक
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जिसमें मुहावरों की बंजर जमीन थी या मोटी चमड़ी की आभा
 
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चाहने भर की देर थी
 
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बांबियों के बीच से रास्‍ता बना सकता था
 
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मेरे जिस्‍म में एक खाली पेट और मवाली अहसास था
 
मेरे जिस्‍म में एक खाली पेट और मवाली अहसास था
 
इससे पहले कि कोई बेसब्री का अनुवाद करे
 
इससे पहले कि कोई बेसब्री का अनुवाद करे
चिडि़यों के आगे चालाकी के दाने बिखराये
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मुझे उन हादसों में
 
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जिन्‍दगी की साबुत
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मुस्‍कराहटें उगती हैं
 
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यह जानते हुए कि जख्‍म एक खुले मर्तबान
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यह जानते हुए कि ज़ख़्म एक खुले मर्तबान
 
की तरह मैदान में रखा हुआ है
 
की तरह मैदान में रखा हुआ है
मैंने उन खुदगर्ज हर्फों के खिलाफ गवाही दी
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जो रोजमर्रा की तकलीफों की
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नगरपालिका की ओर धकेल रहे थे
 
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वे उस वक्‍त भी मेरे चौतरु हैं
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वे उस वक़्त भी मेरे चौतरु हैं
 
उनकी गुर्राहट
 
उनकी गुर्राहट
कपड़ों की सलवटों में खो गयी हैं
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कपड़ों की सलवटों में खो गई हैं
और मेरी नफरत मेरी बेचैनी सूखे जख्‍म की भांति
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और मेरी नफ़रत मेरी बेचैनी सूखे ज़ख़्म की भाँति
सख्‍त गाड़ी खुरदरी हो गयी है !
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सख़्त गाड़ी खुरदरी हो गई है !
  
 
('बलराम के हजारों नाम' से)
 
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01:01, 31 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

ज़ख़्म जब सूखने लगा और ख़ून ने एक
ग़ैरवाजिब चुप्‍पी अख़्तियार कर ली तो वे मेरे सिर पर
चाणक्‍य का अर्थशास्‍त्र तानकर खड़े हो गए

मोमबत्तियाँ जल रही थीं जलसे में
मोम कुछ दरारों में गिरकर शासन की आत्‍मकथा तक
पहुँच रहा था
जिसमें मुहावरों की बंजर जमीन थी या मोटी चमड़ी की आभा

चाहने भर की देर थी

मैं भी कुछ निकम्‍मी हड्डियों और अनाथ ख़ुशियों को
ठेले में भरकर
बांबियों के बीच से रास्‍ता बना सकता था
सलाम ठोंक सकता था
कवायद कर सकता था
खाकी फैसलों के सामने

लेकिन
मेरे जिस्‍म में एक खाली पेट और मवाली अहसास था
इससे पहले कि कोई बेसब्री का अनुवाद करे
चिडि़यों के आगे चालाकी के दाने बिखराए
मुझे उन हादसों में
उतरना था जिनके भीतर
ज़िन्‍दगी की साबुत
मुस्‍कराहटें उगती हैं

यह जानते हुए कि ज़ख़्म एक खुले मर्तबान
की तरह मैदान में रखा हुआ है
मैंने उन ख़ुदगर्ज़ हफ़ों के खिलाफ़ गवाही दी
जो रोज़मर्रा की तकलीफ़ों की
नगरपालिका की ओर धकेल रहे थे

वे उस वक़्त भी मेरे चौतरु हैं
उनकी गुर्राहट
कपड़ों की सलवटों में खो गई हैं
और मेरी नफ़रत मेरी बेचैनी सूखे ज़ख़्म की भाँति
सख़्त गाड़ी खुरदरी हो गई है !

('बलराम के हजारों नाम' से)