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गहूँ काटणनीळो तरबूजो केतरो सुहावणो लगऽ / निमाड़ी

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

गहूँ काटणऽ नहीं जाऊं रे साहेबजी, गहूँ काटणऽ नहीं जाऊं।
गहूँ काटणऽ म्हारी भौजाई खऽ भेजो,
उनकी रसोई हम रांधा साहेबजी, गहूँ काटणऽ नहीं जाऊं।
गहूँ काटणऽ म्हारी देराणी खऽ भेजो,
उनको पाणी हम भरां साहेबजी, गहूँ काटणऽ नहीं जाऊं।
गहूँ काटणऽ म्हारी सौतऽ भेजो,
हम सेजां हम सोवां साहेब जी, गहूँ काटणऽ नहीं जाऊं।