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ग़ज़ल उर्दू में कहता हूँ , ग़ज़ल हिंदी में कहता हूँ / राजेन्द्र स्वर्णकार

ग़ज़ल उर्दू में कहता हूं, ग़ज़ल हिंदी में कहता हूँ
यहां तक…भोजपुरी में, मादरी बोली में कहता हूँ

ग़ज़ल फ़न है, मैं सब बातें फ़न-ए-फ़ित्री में कहता हूँ
नहीं यह भी कि ख़ुदगरज़ी या मनमर्ज़ी में कहता हूँ

जदीदी शाइरी करता, रिवायत भी निभाता हूँ
मैं तर्तीबो-तबीअत से ग़ज़ल लुगवी में कहता हूँ

रदीफ़ो - क़ाफ़िये हैं बाअदब हर शे'र में हाज़िर
तग़ज़्ज़ुल में हर इक मिसरा मैं पाबंदी में कहता हूँ

मुहतरम हैं बड़े उस्ताद-आलिम परख लें आ'कर
मुकम्मल बहर में कहता; मगर मस्ती में कहता हूँ

जहां हूँ रू-ब-रू इंसानियत के गुनहगारों से
वहां अश्आर मैं बेशक़ बहुत तल्ख़ी में कहता हूँ

ख़ुद-ब-ख़ुद संग में तब्दील कोई मोम कब होता
वज़ह ढूंढें अगर कुछ लफ़्ज़ मैं तुर्शी में कहता हूँ

मेहरबां सरस्वती मे'आर रखती क़ाइमो - दाइम
ग़ज़ल की ही मसीहाई पज़ीराई में कहता हूँ

नहीं राजेन्द्र चिल्लाता, ख़ुशगुलूई मेरा लहजा
बुलंदी की कई बातें ज़ुबां नीची में कहता हूँ