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ग़मों से बशर को रिहा देखना / विकास जोशी

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ग़मों से बशर को रिहा देखना
सुलगती कोई जब चिता देखना

गुज़रना अक़ीदत से कुछ इस तरह
के पत्थर में अपना खुदा देखना

ये करना दुआ के लगे ना नज़र
शजर जब कोई तुम हरा देखना

न हो मुतमइन सौंप कर कश्तियाँ
डुबा दे न ये नाख़ुदा देखना

बुलंदी पे खुद को भी पाना कभी
समय की बदलती अदा देखना

है मुमकिन नतीजा जुदाई भी हो
मगर इश्क़ की इब्तेदा देखना

न जाने घड़ी कौन हो आखरी
हुए फ़र्ज़ सारे अदा देखना

रवायत निहायत है दुश्वार ये
यूं बेटी की घर से विदा देखना