भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ग़म का अहसास जवाँ हो जाता / रविंदर कुमार सोनी
Kavita Kosh से
Ravinder Kumar Soni (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:26, 28 फ़रवरी 2012 का अवतरण (extra cat removed)
ग़म का अहसास जवाँ हो जाता
अश्क आँखों से रवाँ हो जाता
कुछ तो हो जाता असर उन पर भी
क़िस्सा ए ग़म जो बयाँ हो जाता
सुबह आती तो धुन्दलके जाते
दूर ज़ुल्मत का धुआँ हो जाता
मेरे सजदों से तिरा नक़श क़दम
मेरी मंज़िल का निशाँ हो जाता
जल रहा था मिरे दिल का कागज़
आग बुझती तो धुआँ हो जाता
दिल में ज़ख्मों को छुपा लेता रवि
राज़ जीने का अयाँ हो जाता