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"ग़म जो कर दे छू मंतर / हरिराज सिंह 'नूर'" के अवतरणों में अंतर

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ऐसा दिखला कोई हुनर।
  
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फिर न किसी मुश्किल  से डर।
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किसको, किसकी फ़िक्र यहाँ,
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चलता जा तू राह गुज़र।
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सब अपनी दुनिया में मस्त,
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तेरा मुक़द्दर साथ है जब,
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‘नूर’ तुझे काहे का डर।
 
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20:21, 31 अक्टूबर 2019 के समय का अवतरण

ग़म जो कर दे छू मंतर।
ऐसा दिखला कोई हुनर।

सब की सुन और मन की कर,
फिर न किसी मुश्किल से डर।

किसको, किसकी फ़िक्र यहाँ,
चलता जा तू राह गुज़र।

सब अपनी दुनिया में मस्त,
सब की अपनी मस्त नज़र।

तेरा मुक़द्दर साथ है जब,
‘नूर’ तुझे काहे का डर।