भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ग़म देते हैं तो इज़्तिराब न दे / गौहर उस्मानी

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:25, 25 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गौहर उस्मानी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ग़म देते हैं तो इज़्तिराब न दे
ज़िंदगी दे मगर अज़ाब न दे

मुस्कुराने के हैं कई मफ़्हूम
मुस्कुरा कर कोई जवाब न दे

इस की ता'बीर किस से पूछूँगा
मेरी आँखों को कोई ख़्वाब न दे

ख़ुद-शनासी मिटाए देता है
ऐश इतना भी बे-हिसाब न दे

मुझ को जो चाहे दे सज़ा लेकिन
मस्लहत की कोई नक़ाब न दे

तेरी ज़िद है यही अगर साक़ी
ज़हर दे दे मगर शराब न दे