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ग़म में शामिल हो किसी के न ख़ुशी अपनाए / पुरुषोत्तम 'यक़ीन'

ग़म में शामिल हो किसी के न ख़ुशी अपनाए
ख़ुद को वो शख़्स भरी दुनिया में तनहा पाए

कैसा तूफ़ान उठाते हैं ज़माने वाले
जब कोई शे’र हकीकत का बयाँ कर जाए

सुनने वाले हों जहाँ लोग सभी पत्थर दिल
ऐसी महफ़िल में भला कोई ग़ज़ल क्या गाए

ख़ून के आँसू मुझे पीने की आदत हो चली
क्या मजाल अब कि कोई बूँद कहीं गिर जाए

कुछ नहीं दिखता कहीं इतना अँधेरा है 'यक़ीन'
रोशनी तेज़ कहीं इतनी नज़र चुँधियाए