भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ग़म में शामिल हो किसी के न ख़ुशी अपनाए / पुरुषोत्तम 'यक़ीन'

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:05, 21 अक्टूबर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ग़म में शामिल हो किसी के न ख़ुशी अपनाए
ख़ुद को वो शख़्स भरी दुनिया में तनहा पाए

कैसा तूफ़ान उठाते हैं ज़माने वाले
जब कोई शे’र हकीकत का बयाँ कर जाए

सुनने वाले हों जहाँ लोग सभी पत्थर दिल
ऐसी महफ़िल में भला कोई ग़ज़ल क्या गाए

ख़ून के आँसू मुझे पीने की आदत हो चली
क्या मजाल अब कि कोई बूँद कहीं गिर जाए

कुछ नहीं दिखता कहीं इतना अँधेरा है 'यक़ीन'
रोशनी तेज़ कहीं इतनी नज़र चुँधियाए