Last modified on 26 सितम्बर 2010, at 20:42

ग़लत कहानी नहीं चलेगी / उदयप्रताप सिंह

अभी समय है सुधार कर लो ये आनाकानी नहीं चलेगी
सही की नक़ली मुहर लगाकर ग़लत कहानी नहीं चलेगी

घमण्डी वक़्तों के बादशाहों बदलते मौसम की नब्ज़ देखो
महज़ तुम्हारे इशारों पे अब हवा सुहानी नहीं चलेगी

किसी की धरती, किसी की खेती, किसी की मेहनत, फ़सल किसी की
जो बाबा आदम से चल रही थी, वो बेईमानी नहीं चलेगी

समय की जलती शिला के ऊपर उभर रही है नई इबारत
सितम की छाँहों में सिर झुकाकर कभी जवानी नहीं चलेगी

चमन के काँटों की बदतमीज़ी का हाल ये है कि कुछ न पूछो
हमारी मानो तुम्हारे ढँग से ये बाग़बानी नहीं चलेगी

‘उदय’ हुआ है नया सवेरा मिला सको तो नज़र मिलाओ
वो चोर-खिड़की से घुसने वाली प्रथा पुरानी नहीं चलेगी