Last modified on 4 अगस्त 2009, at 19:16

ग़ाफ़िल कुछ और कर दिया शमयेमज़ार ने / सीमाब अकबराबादी


ग़ाफ़िल कुछ और कर दिया शमये-मज़ार ने।
आया था मैं तो नशये-हस्ती उतारने॥


हँसता है क्या बुझी हुई शमये-हयात पर।
देखी है सुबह भी तो मेरी लालाज़ार ने॥