अचानक ही उतरता हो
तुम्हारे आंगन में
अजनबी कोई परिंदा
और सहज स्वीकार कर लेता हो
तुम्हारे हाथ का दाना-पानी
तो समझ लो
कि समझ में आने लगी है
अब तुम्हें भी
ग़ैब की भाषा…
अचानक ही उतरता हो
तुम्हारे आंगन में
अजनबी कोई परिंदा
और सहज स्वीकार कर लेता हो
तुम्हारे हाथ का दाना-पानी
तो समझ लो
कि समझ में आने लगी है
अब तुम्हें भी
ग़ैब की भाषा…