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ग़ैर के पास ये अपना है ग़ुमाँ है कि नहीं / सौदा

ग़ैर के पास ये अपना है ग़ुमाँ है कि नहीं
जल्वागर यार मिरा वरना कहाँ है कि नहीं

मेहर1 हर ज़र्रे में मुझको ही नज़र आता है
तुम भी टुक देखो ओ साहिबे-नज़राँ2, है कि नहीं

दिल के टुकड़ों को बग़ल बीच लिए फिरता हूँ
कुछ इलाज इनका भी ऐ शीशागराँ3, है कि नहीं

जुर्म है उसको जफ़ा का कि वफ़ा की तक़सीर4
कोई तो बोलो मियाँ, मुँह में ज़बाँ है कि नहीं

क़ता:

पूछा इक रोज़ मैं 'सौदा' से कि ऐ आवारा
तेरे रहने का मुअय्यन5 भी मकाँ6 है कि नहीं
यकबयक होके बर-आशुफ़्ता7 लगा ये कहने
कुछ तुझे अक़्ल से बहरा8 भी मियाँ है कि नहीं
देखा मैं क़स्रे-फ़रीदूँ9 के दर ऊपर इक शख़्स
हलक़ाज़न होके10 पुकारा कोई याँ है कि नहीं

शब्दार्थ:
1. सूरज 2. नज़र वालों 3. शीशे का काम करने वालों 4. क़ुसूर 5. निश्चित 6. स्थान 7. चिड़चिड़ा होकर 8. सरोकार 9. ईरान के एक बादशाह का फ़रीदूँ का महल 10. चकराकर