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गाँठ मन की यहाँ खोलता कौन है / विष्णु सक्सेना

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गाँठ मन की यहाँ खोलता कौन है
क्या पता इश्क़ में बेवफा कौन है

शायद औरों के ग़म में परेशां हो तुम,
वरना रातों को यूँ जागता कौन है।

साथ ग़ुरबत में तुमने दिया शुक्रिया
वर्ना हमको यहाँ पूछता कौन है।

मजहबो को तो सब मानते है यहाँ
मजहबों की यहाँ मानता कौन है।

हम कहाँ आपकी तरह मशहूर हैं,
शहर भर में हमें जानता कौन है।

दिल के रिश्ते हों या दिल का मंदिर कोई
तोड़ते हैं सभी जोड़ता कौन है।

तीर्थ को सब हैं जाते बड़े शौक से
घर में माँ-बाप को पूजता कौन है।

रात दिन का सफ़र पर थकावट नहीं,
मेरी नस-नस में ये दौड़ता कौन है।

एक हैं हम भी और देश भी एक है,
फिर न जाने हमें बांटता कौन है।

मेरी बेटी नहीं सिर्फ़ बेटे हैं फिर
मेरे आँगन में ये झूलता कौन है।

एक दूजे को हमने निहारा मगर,
ये पता न चला आइना कौन है!