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गाँधी / हरिवंशराय बच्‍चन

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एक दिन इतिहास पूछेगा

कि तुमने जन्‍म गाँधी को दिया था,


जिस समय हिंसा,

कुटिल विज्ञान बल से हो समंवित,

धर्म, संस्‍कृति, सभ्‍यता पर डाल पर्दा,

विश्‍व के संहार का षड्यंत्र रचने में लगी थी,

तुम कहाँ थे? और तुमने क्‍या किया था!


एक दिन इतिहास पूछेगा

कि तुमने जन्‍म गाँधी को दिया था,

जिस समय अन्‍याय ने पशु-बल सुरा पी-

उग्र, उद्धत, दंभ-उन्‍मद-

एक निर्बल, निरपराध, निरीह को

था कुचल डाला

तुम कहाँ थे? और तुमने क्‍या किया था?


एक दिन इतिहास पूछेगा

कि तुमने जन्‍म गाँधी को दिया था,

जिस समय अधिकार, शोषण, स्‍वार्थ

हो निर्लज्‍ज, हो नि:शंक, हो निर्द्वन्‍द्व

सद्य: जगे, संभले राष्‍ट्र में घुन-से लगे

जर्जर उसे करते रहे थे,

तुम कहाँ थे? और तुमने क्‍या किया था?


क्‍यों कि गाँधी व्‍यर्थ

यदि मिलती न हिंसा को चुनौ‍ती,

क्‍यों कि गाँधी व्‍यर्थ

यदि अन्‍याय की ही जीत होती,

क्‍यों कि गाँधी व्‍यर्थ

जाति स्‍वतंत्र होकर

यदि न अपने पाप धोती!