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"गाँवोॅ के हवा / अचल भारती" के अवतरणों में अंतर

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घन्नोॅ धुंध छै
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सुनै छियै कहियो गाँवोॅ के हवा
आरू स्मृति रोॅ संझौती झुरमुट
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बड़ी उदार छेलै !
लोरैलोॅ नजर खोजै छै
+
महाँकोॅ सें करै छेलै गमगम,
गाँव, बचपन, गलबाँही
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आरो ओकरा सें टपकै दुलार छेलै !
ऊ पातरोॅ रं नदी
+
तही लेॅ उछलैनें छेलै
जै में हमरी माय के आँचल
+
चारो दिसें नें गांवोॅ के रीति-रेवाज !
खिलखिल करै
+
आरो कवि सिनी
कनियाँ नाँखी घोघोॅ रोॅ बीचोॅ सें
+
दौड़ी-दौड़ी ऐलोॅ छेलै गाँव में
झाँकतेॅ ओकरोॅ गोल-गोल चेहरा
+
अखनी वहेॅ गाँव छेकै !
लोर, तेज, ममता आरू झिड़की में
+
गाँवोॅ के हवा बीमार छै,
बनौटीपन नै छेलै
+
शहरोॅ सें ऐलोॅ सब कुछ उधार छै !
मजकि बेबसी में
+
लोगोॅ के आगूं लाज बेकार छै,
नागफनी रं लागै कांछा ।
+
आरो कवि छै कि आरी पर बैठी केॅ
चैखटी पर राखलोॅ दीया में
+
गाय-गाय झुम्मर में खोजै संसार छै !
जबेॅ-जबेॅ वैं झाँकै
+
दिखै ओकरोॅ झुर्री
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थकचुरुओॅ, मायूस आरो उदास नजर
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जेकरोॅ मानी
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कोय्यो मानी नै छेलै ।
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02:45, 22 जून 2016 के समय का अवतरण

सुनै छियै कहियो गाँवोॅ के हवा
बड़ी उदार छेलै !
महाँकोॅ सें करै छेलै गमगम,
आरो ओकरा सें टपकै दुलार छेलै !
तही लेॅ उछलैनें छेलै
चारो दिसें नें गांवोॅ के रीति-रेवाज !
आरो कवि सिनी
दौड़ी-दौड़ी ऐलोॅ छेलै गाँव में
अखनी वहेॅ गाँव छेकै !
गाँवोॅ के हवा बीमार छै,
शहरोॅ सें ऐलोॅ सब कुछ उधार छै !
लोगोॅ के आगूं लाज बेकार छै,
आरो कवि छै कि आरी पर बैठी केॅ
गाय-गाय झुम्मर में खोजै संसार छै !