भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गाँव-गाँव गाते रहे भजन कबीरदास / अशोक 'अग्यानी'

Kavita Kosh से
डा० जगदीश व्योम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:11, 26 अगस्त 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रेम की पवित्र अभिनन्दनीय वादियों में
             जाने कौन सी बयार पत्तियों को छू गयी
चाहत की चाँदनी सिहर गयी पोर-पोर
            आहत हुई तो ओस बनकर चू गयी
भावना के रंग भेद-भाव के शिकार हुए
            अपनों से दूर अपनों की खुशबू गयी
गाँव-गाँव गाते रहे भजन कबीरदास
             किन्तु किसी मन से न मैं गया न तू गयी