भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गाँव वापसी / कौशल किशोर

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:24, 26 सितम्बर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कौशल किशोर |अनुवादक= |संग्रह=उम्म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लॉकडाउन के दिनों में
जब लाखों लोग लौट रहे हैं गांव
मुझे भी बहुत याद आ रहा अपना गांव

शहर में रहते बरसों बीत गए
यहाँ अपनी पहचान को बचाकर रखना आसान नही
उसमें होती है माटी की सुगंध
और होता है अपना लोक
कोशिश यही रही कि बनूं तो पेड़ बनूं
ठूंठ नहीं

यह जिंदगी की आपाधापी है
बरस पर बरस बीत गये
मैं नहीं जा पाया गांव
भला हो नींद का और सपने का
जहाँ अक्सर पहुँच जाता हूँ गांव

यह भी है बहुत खूब
कि जागते कभी गाँव न जा पाया
और सपने में
कभी गाँव से लौट न पाया

गांव से आती रहीं खबरें
दुविधा से घेरती रहीं खबरें
जैसे जब मैंने सोचा
जाने को तैयार हुआ
खेत के बिक जाने की खबर आयी
और पांव वहीं ठिठक गए

जाता तो क्या यह नहीं समझा जाता
कि मैं पहुँचा हूँ अपना हिस्सा लेने

इसी तरह की खबरें आती रही हैं
कभी बाग के बिक जाने की
तो कभी बगीचे के
वह आखिरी खबर थी
कि घर भी रामपूजन सोनार के हाथ बेच
सभी चले गए शहर
यह खबरों के सिलसिले का ही नही
आस की अन्तिम डोर के टूटने की खबर थी

मैंने कभी नहीं चाहा
खेत-बघार, बाग-बगीचा
माल-मवेशी, घर-दुआर
उनमें अपना हिस्सा
यही सोचता रहा कि अपने जांगर से
जो पाया, बना पाया
वही अपना है, उसी पर अधिकर है मेरा
इससे अधिक कुछ नहीं

क्या पेड़ का धरती से अलग
कोई अस्तित्व हो सकता है
यही रिश्ता है मेरा
वहाँ मेरा बचपन है, उसकी किलकारियाँ हैं
मेरी हंसी है, रुलाई है, तरुणाई है
बाबा और दादी का इंतजार है
अम्मा और बाबूजी का प्यार है
वहाँ एक दुनिया है
जिसने मुझे कविता की तरह रचा है

अब वहाँ मेरा कुछ भी नहीं है
बस बचा है मेरे लिए तो सिर्फ गाँव का नाम
कोई पूछता भी है
तो बताने से हिचकता हूँ, झिझकता हूँ
पहचान भी दिन-दिन घिस रही है
वह धुंधली होती जा रही है

यह संकट की घड़ी है
देश लॉक डाउन में है
लोग लौट रहे हैं अपने गाँव की ओर
सोचता हूँ
इस संकट से मुझे दो-चार होना पड़ता
लौटने वालों की तरह मुझे भी लौटना होता

क्या होता मेरा?

न शहर होता, न गाँव होता
कहाँ होता मेरा बसेरा?