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"गाँव ही तो हूँ सुनो / सर्वेश अस्थाना" के अवतरणों में अंतर

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मुश्किलों में मुस्कुराता ठाँव ही तो हूँ।
 
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गाँव ही तो हूँ सुनो मैँ गाँव ही तो हूँ।।
 
गाँव ही तो हूँ सुनो मैँ गाँव ही तो हूँ।।
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चीथड़ों में भी खुशी से नाचती बिटिया
 
चीथड़ों में भी खुशी से नाचती बिटिया
 
राज सिंहासन सरीखी बुआ की खटिया।
 
राज सिंहासन सरीखी बुआ की खटिया।
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धूप में खिलती हुई एक छांव ही तो हूँ
 
धूप में खिलती हुई एक छांव ही तो हूँ
 
गाँव ही तो हूँ सुनो मैं गाँव ही तो हूँ।।
 
गाँव ही तो हूँ सुनो मैं गाँव ही तो हूँ।।
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जल रहे चूल्हे पड़ोसी से मिली कुछ आग से
 
जल रहे चूल्हे पड़ोसी से मिली कुछ आग से
 
दूर के देवर रिझाते भौजियों को फाग से
 
दूर के देवर रिझाते भौजियों को फाग से
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हो रहा भारी बहू का पाँव ही तो हूँ
 
हो रहा भारी बहू का पाँव ही तो हूँ
 
गाँव ही तो हूँ सुनो मैं गाँव ही तो हूँ।।
 
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आंधियों में उड़ रहा वो एक छप्पर हूँ,
 
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महल के सपने सजाता टीन टप्पर हूँ।
 
महल के सपने सजाता टीन टप्पर हूँ।
 
 
बाढ़ में हर साल बहना भी नियति है,
 
बाढ़ में हर साल बहना भी नियति है,
 
आपदा हर हाल सहना भी नियति है।
 
आपदा हर हाल सहना भी नियति है।

16:27, 29 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

 
गाँव ही तो हूँ सुनो मैं गाँव ही तो हूँ।
भोर के आने से पहले उठ खड़ा हूँ मैं
भूख हो या प्यास हो सब से लड़ा हूँ मैं
खेत की गोदों में पलता बैल हल हूँ मैं
आज की आंखों में हंसता एक कल हूँ मैं।
मुश्किलों में मुस्कुराता ठाँव ही तो हूँ।
गाँव ही तो हूँ सुनो मैँ गाँव ही तो हूँ।।

चीथड़ों में भी खुशी से नाचती बिटिया
राज सिंहासन सरीखी बुआ की खटिया।
व्यंजनों को मात करते हैं नमक रोटी
आंगनों को लीपती हैं मिल बड़ी छोटी।
धूप में खिलती हुई एक छांव ही तो हूँ
गाँव ही तो हूँ सुनो मैं गाँव ही तो हूँ।।

जल रहे चूल्हे पड़ोसी से मिली कुछ आग से
दूर के देवर रिझाते भौजियों को फाग से
एक भाभी के लिए टोले की सारी ननदियाँ
पर समझ पातीं नही क्यों आईं इतनी इमलियाँ
हो रहा भारी बहू का पाँव ही तो हूँ
गाँव ही तो हूँ सुनो मैं गाँव ही तो हूँ।।

आंधियों में उड़ रहा वो एक छप्पर हूँ,
महल के सपने सजाता टीन टप्पर हूँ।
बाढ़ में हर साल बहना भी नियति है,
आपदा हर हाल सहना भी नियति है।
एक अंधे काग की बस काँव ही तो हूँ
गाँव ही तो हूँ सुनो बस गाँव ही तो हूँ।।