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गाछ लगाबू / एस. मनोज

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गाछ लगाबू बरखा लेल

पानिकेँ सोता टूटि रहल अछि
डबरा पोखरि सूखि रहल अछि
गाछ बिरीछ पर संकट होयतै
मनुखोमे आब ठेलमठेल
गाछ .......
गाछ कटि रहल सालों साल
पर्यावरण भ' रहल कंगाल
जल संकट विकराल भ' रहल
जनजीवन भ' जायत फेल
गाछ....
धरती सभ बंजर भ' जयतै
माछ मखान कतहु नहि पयतै
बून बून ल' तरसत सभ कियो
हमर वचन नहि बूझू खेल
गाछ......