भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गामक लोक / बुद्धिनाथ मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बैरङ चिट्ठी जकाँ फिरैए
गामक लोक ।
कस्तूरी मृग जकाँ मरैए
गामक लोक ।

महानगर अपराध करय
बुधियार बनल
आ जरिमाना तकर
भरैए गामक लोक ।

दऽ सर्वस्व जियाबैए
न्यायालय कें
कोना न कहबै
भने लड़ैए गामक लोक ।

सभ इजोत भऽ गेल निपत्ता
साँझहि में
माटिक डिबिया जकाँ
बरैए गामक लोक ।

घरक लाज नाङट भऽ
विज्ञापन बनि गेल
टूटल धनुखा तर
नमरैए गामक लोक ।

मंदिर केर देवांश
पुजारी लूटि रहल
धूजा बनि-बनि कें
फहरैए गामक लोक ।