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गामोॅ के लोग / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो

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टुटलोॅ चंङेरा में चोप लगाय छै,
कत्तेॅ दिन ठठते?
एक्के टा कपड़ा पर गुजर चलाय छै,
केन्हें नो फटतै?

दोसरें की जानतै दोसरा के शोग,
केना केॅ जीयै छै गामोॅ के लोग!

घरोॅ के आगू में औकतोॅ पथार
ऐङना में धरलोॅ छै झारी-पर-झार
(जेना उलझन के भार)
कहाँ नुकैलोॅ छै निजगी के सार?
आँखी में आशा नै, भावहीन बोध;
कथी के करै छै डूबी क शोध?
बैठलोॅ छै आँखोॅ पँजराठी ढील,
दैवें कपारोॅ में ठोंकने छै कील,
‘दैवे दैव’ दबाय, ‘दैवे-दैव’ रोग!
मरनी सें जीयै छै गामोॅ के लोग!