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गारी / प्रमोद कुमार तिवारी

कमेसरा के दादी कांपत अवाज में
गरियावत रही ब्रह्मा विष्णु आ महेश के,
उनका गाल के झुर्रियन में अंटकल रहे
ढेर सारा लाज के लाली।
कि नटवर नारायण त हरमेसा के चालू ठहरले
भला ऊ कहाँ पकड़ में अइहें
अउर ब्रह्मा के बुढ़ौती के खयाल त भाई रखहीं के पड़ी
ढेर होई त उनका सन जइसन दाढ़ी में
पोत दियाई करिखा।

बाकिर हर बार पकड़ा जाले बेचारे बमभोला
अड़भंगी, नसेड़ी, शंभु के ख़ूब होला मलामत
कि किरा-बिच्छी वाला बौड़म के हाथ में
पड़ गइली आपन ‘गउरा’।

खेत-खरीहान तक फइलल जात रहे
गारी के मधुर धुन
जाने कइसन जादू रहे गारी में
कि सास के मार भुला गइल फुलमतिया
नयका पाहुन के गरियावे के बोलावा सुन के।
अउर रसिक राजा दशरथ से मोछमुंडा देवर तक
सरपट दउड़े लागल गारी के सुर
गनेस के मेहरारू अइसन डूब के जोड़त रहे
समधिन के अवैध संबंध
कि ओकरा तनिको ना सुनात रहे
अँचरा पकड़ के रोवत लइका के आवाज
इंडिया गेट जइसन पेट वाला भसुरजी
गवनिहारिन सब के दिहले दू गो कड़कड़ सौटकिया नोट

बहुत दिनन के बाद भेंटाइल दोस्त
चार गो गारी देहला के बाद
पूछलस हमार हाल,

चउठारी आइल बुढ़ऊ के गारी बिना
फीका लागत रहे खाना
सरापत रहले गाँव वालन के संस्कार के।
बी.एच.यू. के बिरला छात्रावास के पुरान छात्र लोग
थरिया पीट-पीट नाचत, फागुन के एगो रात में
लैंगिक संबंध प कइले शोधकार्य
सबेरे गर्दन प चूना थोप के निकलल लोग
डिलीट के डिग्री जइसन।
मंत्री जी चेला सब के बतावत रहले
आहो, कुछ भाव गिर गइल बा का एह साल
अस्सी के होली में ससुरा ना लेहले ह स हमार नाम।
ढेर दिना से मुँह फुलवले आलमगीर भाई के
कबीरा के बहाने एतना गरियवले गिरिधर पंडित
कि ‘ससुरा सठिया गइल बा’ कहत
उनका गले लगवहीं के पड़ल।

जी भर पाहुन के गारिया लेला के बादो
बहुत कुछ बांचल रह गइल रहे
जवना के अँचरा के खूंट में बान्हद के
घरे ले गइल रधिया
अउर जवना के बहुत दिन तक चभुलावत रहले
पोपला मुंह वाला अजिया ससुर।
बाकिर मुई! का जाने कइसन गारी रहे ओह बचवा के
कि धह-धह जरे लागल पूरा के पूरा शहर
जवना के बुझा रहल बाड़े लोग
एक दूसरा के ख़ून से।