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गारुण मंत्र का कवि / शैलेन्द्र चौहान - अवतरण इतिहास
2024-03-29T01:55:21Z
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अनिल जनविजय: New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेन्द्र चौहान }} '''स्व. कवि अनिल कुमार के लिए''' मौत का ...
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{{KKRachna<br />
|रचनाकार=शैलेन्द्र चौहान<br />
}}<br />
<br />
'''स्व. कवि अनिल कुमार के लिए'''<br />
<br />
<br />
मौत का सैलाब<br />
<br />
ख़ून से लथपथ लाशें<br />
<br />
और उसमें पका हुआ भात<br />
<br />
लाशें सात...!<br />
<br />
सात हजार...!<br />
<br />
<br />
रोज़ के रोज़<br />
<br />
यही होता है<br />
<br />
ये सत्ता के भूखे गीदड़<br />
<br />
रचते हैं रोज़ <br />
<br />
नई-नई व्यूह-रचना<br />
<br />
इन्सानों के ख़ून से<br />
<br />
पका भात खाने को<br />
<br />
<br />
गारुण-मंत्र के कवि<br />
<br />
तुम इन तांत्रिकों की<br />
<br />
चपेट में आने से<br />
<br />
नहीं बच सके<br />
<br />
<br />
अब तुम्हारी याद शेष है<br />
<br />
लिली टाकीज के पास<br />
<br />
रेलिंग पकड़े <br />
<br />
ताल को निहारते हुए!<br />
<br />
<br />
तालाब में मछलियाँ <br />
<br />
तैरती हैं बेआवाज़<br />
<br />
ठहरे हुए पानी में<br />
<br />
उठ रही है सड़ांध<br />
<br />
<br />
तड़पता है बेआवाज़<br />
<br />
मछलियों की तरह<br />
<br />
आदमी बेजान<br />
<br />
सत्ता का ज्वर <br />
<br />
अब भी चढ़ा है वैसा ही<br />
<br />
<br />
मनौतियां मांगी हैं<br />
<br />
लोगों ने<br />
<br />
पीपल के पेड़ में<br />
<br />
कीलें ठोंक कर<br />
<br />
<br />
आएगा एक दिन<br />
<br />
बसंत का मौसम<br />
<br />
चिड़ियों की बीट से<br />
<br />
गंदला गए हैं पत्ते<br />
<br />
<br />
भूल गए हैं <br />
<br />
हम अपना अस्तित्व</div>
अनिल जनविजय