भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गालियाँ / कुमार विकल

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:48, 27 फ़रवरी 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फ़ैक्टरी के मालिक ने

मेरे बेटे को गालियाँ दीं

हरामख़ोर...

सूअर की औलाद

कुत्ते...कमीने

और न जाने क्या-क्या

मेरा बेटा सुनता रहा

रोता रहा...


अब मैं अपने बेटे को गालियाँ दे रहा हूँ

उसने मालिक को

बराबर की गाली क्यों नहॊं दी

क्यों वह

मेरी ढलती उम्र

बीमार माँ

और स्कूल में पढ़ते भाई

के बारे में सोचता रहा

और रोता रहा ।