भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गिरते हैं लोग गर्मी-ए-बाज़ार देख कर / अब्दुल हमीद 'अदम'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गिरते हैं लोग गर्मी-ए-बाज़ार देख कर
सरकार देख कर मेरी सरकार देख कर

आवारगी का शौक़ भड़कता है और भी
तेरी गली का साया-ए-दीवार देख कर

तस्कीन-ए-दिल की एक ही तदबीर है फ़क़त
सर फोड़ लीजिए कोई दीवार देख कर

हम भी गए हैं होश से साक़ी कभी कभी
लेकिन तेरी निगाह के अतवार देख कर

क्या मुस्तक़िल इलाज किया दिल के दर्द का
वो मुस्कुरा दिए मुझे बीमार देख कर

देखा किसी की सम्त तो क्या हो गया 'अदम'
चलते हैं राह-रौ सर-ए-बाज़ार देख कर.