Last modified on 23 जनवरी 2020, at 15:39

गिलहरी / बालस्वरूप राही

उछल-कूद कर रही गिलहरी,
कितनी चंचल, मस्त, छरहरी।
पलक झपकते ये जा, ओ जा।
पल-भर क भी कहीं न ठहरो।
थपकी दी थी इसे राम ने,
तब से पड़ीं लकीरें गहरी।