Last modified on 5 जून 2011, at 15:35

गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 81 से 89/पृष्ठ 2

(82)

जानी है सङ्कर-हनुमान-लषन-भरत राम भगति |
कहत सुगम, करत अगम, सुनत मीठी लगति ||

लहत सकृत, चहत सकल, जुग जुग जगमगति |
राम-प्रेम-पथतें कबहुँ डोलति नहिं, डगति ||

रिधि-सिधि, बिधि चारि सुगति जा बिनु गति अगति |
तुलसी तेहि सनमुख बिनु बिषय-ठगिनि ठगति ||