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गीतुल मितवा / प्रेम शर्मा

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भीगा-भीगा
रोया-रोया,
     गीतुल मितवा
     खोया-खोया,
कवन गुहारू
केहू अकुवारूँ ,
     कण्ठ हलाहल
     ताल कहरवा ।
           
सुर सम्वाद
सधे ना साधे,
     मुखड़े-बोल
     अधूरे-आधे,
नाद अनन्ता
सबद रमन्ता
    न कोउ कन्ता
    नाहि नहरवा ।
          
ओहि रे बचुआ
मानुष अँकुवा,
     तुहिन तो
     हमि इन्द्रधनुषवा,
जीवन जोगे
मरन अजोगे,
     नदी-नाँव
     यात्रा संजोगे,
समय जुझारू
काल बुहारू ,
     निधनं श्रेयः
     खेत सुरगवा ।


(साक्षात्कार, अगस्त, 1998)