भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत-फ़रोश / भवानीप्रसाद मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ ।

मैं तरह-तरह के

गीत बेचता हूँ ;

मैं क़िसिम-क़िसिम के गीत

बेचता हूँ ।


जी, माल देखिए दाम बताऊँगा,

बेकाम नहीं है, काम बताऊंगा;

कुछ गीत लिखे हैं मस्ती में मैंने,

कुछ गीत लिखे हैं पस्ती में मैंने;

यह गीत, सख़्त सरदर्द भुलायेगा;

यह गीत पिया को पास बुलायेगा ।

जी, पहले कुछ दिन शर्म लगी मुझ को

पर पीछे-पीछे अक़्ल जगी मुझ को ;

जी, लोगों ने तो बेच दिये ईमान ।

जी, आप न हों सुन कर ज़्यादा हैरान ।

मैं सोच-समझकर आखिर

अपने गीत बेचता हूँ;

जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ ।


यह गीत सुबह का है, गा कर देखें,

यह गीत ग़ज़ब का है, ढा कर देखे;

यह गीत ज़रा सूने में लिखा था,

यह गीत वहाँ पूने में लिखा था ।

यह गीत पहाड़ी पर चढ़ जाता है

यह गीत बढ़ाये से बढ़ जाता है

यह गीत भूख और प्यास भगाता है

जी, यह मसान में भूख जगाता है;

यह गीत भुवाली की है हवा हुज़ूर

यह गीत तपेदिक की है दवा हुज़ूर ।

मैं सीधे-साधे और अटपटे

गीत बेचता हूँ;

जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ ।


जी, और गीत भी हैं, दिखलाता हूँ

जी, सुनना चाहें आप तो गाता हूँ ;

जी, छंद और बे-छंद पसंद करें –

जी, अमर गीत और वे जो तुरत मरें ।

ना, बुरा मानने की इसमें क्या बात,

मैं पास रखे हूँ क़लम और दावात

इनमें से भाये नहीं, नये लिख दूँ ?

इन दिनों की दुहरा है कवि-धंधा,

हैं दोनों चीज़े व्यस्त, कलम, कंधा ।

कुछ घंटे लिखने के, कुछ फेरी के

जी, दाम नहीं लूँगा इस देरी के ।

मैं नये पुराने सभी तरह के

गीत बेचता हूँ ।

जी हाँ, हुज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ ।


जी गीत जनम का लिखूँ, मरन का लिखूँ;

जी, गीत जीत का लिखूँ, शरन का लिखूँ ;

यह गीत रेशमी है, यह खादी का,

यह गीत पित्त का है, यह बादी का ।

कुछ और डिजायन भी हैं, ये इल्मी –

यह लीजे चलती चीज़ नयी, फ़िल्मी ।

यह सोच-सोच कर मर जाने का गीत,

यह दुकान से घर जाने का गीत,

जी नहीं दिल्लगी की इस में क्या बात

मैं लिखता ही तो रहता हूँ दिन-रात ।

तो तरह-तरह के बन जाते हैं गीत,

जी रूठ-रुठ कर मन जाते है गीत ।

जी बहुत ढेर लग गया हटाता हूँ

गाहक की मर्ज़ी – अच्छा, जाता हूँ ।

मैं बिलकुल अंतिम और दिखाता हूँ –

या भीतर जा कर पूछ आइये, आप ।

है गीत बेचना वैसे बिलकुल पाप

क्या करूँ मगर लाचार हार कर

गीत बेचता हँ ।

जी हाँ हुज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ ।