भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत-1 / नीरज दइया

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:37, 16 मई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज दइया |संग्रह=उचटी हुई नींद / ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो गीत
गा रही हो तुम
पहले भी मैंने
सुना है- कई बार
पर सुन रहा हूं इसे
तुमसे पहली बार।

लगा मुझे
शब्द तो वही हैं
लेकिन अर्थ नए
रचे तुमने
या समय ने!