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गीत और दलित / बाल गंगाधर 'बागी'

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दलित बस्ती से जब नग्मा कोई गंजरता है
गजल का तेवर ना उम्मीदी में बदलता है
गरीब दर पे खुशी बे चिराग लगती है
जब खुदी1 का नामोंनिशान मिटता है
आता है दलितों का जीना खुशी-खुशी
पर जाति के कब्र में दम बेहद घुटता है
गम से खुशी का नाम मिटता नहीं कभी
पर हंसी बहारों से हर गम नहीं मिटता है