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गीत गाते रहे गुनगुनाते रहे / आनंद कृष्ण

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गीत गाते रहे गुनगुनाते रहे।
रात भर महफिलों को सजाते रहे।
 
सबने देखी हमारी हंसी और हम-
आंसुओं से स्वयं को छुपाते रहे।
 
सुर्ख फूलों के आँचल ये लिख जायेंगे-
हम बनाते रहे वो मिटाते रहे।
 
रेत पर नक्शे-पा छोड़ने की सज़ा
उम्र भर फासलों में ही पाते रहे।
 
सबने यारों पे भी शक किया है मगर-
हम रकीबों को कासिद बनाते रहे।
 
हमको आती है यारो! ये सुनकर हंसी-
"वो हमारे लिए दिल जलाते रहे। "
 
नीली आंखों के खंजर चुभे जब उन्हें-
दर्द में "कृष्ण" के गीत गाते रहे।