http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4_%E0%A4%AE%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%B9%E0%A4%BE_/_%E0%A4%89%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2_%E0%A4%B8%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%B7%E0%A4%A3&feed=atom&action=historyगीत मसीहा / उर्मिल सत्यभूषण - अवतरण इतिहास2024-03-29T01:54:53Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4_%E0%A4%AE%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%B9%E0%A4%BE_/_%E0%A4%89%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2_%E0%A4%B8%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%B7%E0%A4%A3&diff=268999&oldid=prevसशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्मिल सत्यभूषण |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2019-10-20T18:53:17Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्मिल सत्यभूषण |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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{{KKRachna<br />
|रचनाकार=उर्मिल सत्यभूषण<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=मेरे गीत मसीहा / उर्मिल सत्यभूषण<br />
}}<br />
{{KKCatGeet}}<br />
<poem><br />
सूली पर लटके मसीहा<br />
गीत अपने हो गये हैं<br />
वेदना संवेदना के गीत<br />
अनगिन वो गये हैं।<br />
पाप अत्याचार की जड़ पर<br />
प्रबल प्रहार करते<br />
शब्द तीखी धार वाले<br />
बाण चुन-चुन वार करते<br />
मारते संहारते भी अश्रुभाल<br />
पिरो गये हैं<br />
कड़कड़ाती शीत में निर्धन<br />
ठिठुरते कांपते हैं<br />
नेह की कंबली ओढ़ाकर<br />
गीत उनको ढांपते हैं<br />
उनकी ख़ातिर चाय की चुस्की<br />
सरीखे हो गये हैं।<br />
सत्य की खातिर हजारों<br />
बार मरते और जीते<br />
फांसियों को चूमते हैं-<br />
ज़हर के प्याले भी पीते<br />
किन्तु ये इन्सानियत के<br />
दाग़ कितने धो गये हैं।<br />
ये निराशा की नदी को<br />
आस के सागर बने हैं<br />
है हृदय नवनीत इनके किन्तु<br />
गौरव से तने हैं।<br />
भावना के जल से पाषाणों<br />
की आँखें धो गये हैं।<br />
राख में से जाने कैसे<br />
एक चिनगी जाग जाती<br />
मर गई संवेदनाएं सिर-<br />
उठा कर चमचमाती<br />
ऐसे लगता है हमारे<br />
गीत स्वयंभू हो गये हैं।<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५