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गीत वाले मन / नरेन्द्र दीपक

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अनमना-सा पन्थ पर हर इक चरण
जन्म पर हावी हुआ जाता मरण
बोल मेरे गीत वाले मन तुझे
ले चलूँ मैं किस गगन की छाँव में

धुन्ध से घिरती हुई हर इक दिषा
कटघरों में क़ैद युग की लालसा
दृष्टि के इस छोर से उस छोर तक
आँधियों के काफिलों का सिलसिला

स्वार्थ के अनुवाद-सा हर आभरण
बेतहाषा चीखता वातावरण
बोल मेरे अनमने से मन तुझे
प्यार का मरहम मिले किस गाँव में

वक्त के माथे सलवटें
तम बिखेरे जा रहा अपनी लटें
इस सुलगती दहकती ऋतु में भला
उम्र तो दूभर कि पल कैसे कटें

क्या अजब बिगड़ा समय का व्याकरण
हर डगर का वासनामय आचरण
बोल मेरे मन कहाँ सम्भव मिले
मंज़िलों की धूल तेरे पाँव में

बिजलियों की कौंध से घायल गगन
मर्सिया गाता गुलाबों का चमन
इन दिनों तासीर चन्दन की सुनो
दे रहा बारूद से ज़्यादा जलन

और कितने दूँ भला मैं उद्धरण
एक भी दिखती न आषा की किरण
क्या किनारा ख़ाक पायेंगे भला
जबकि पानी भर रहे ख़ुद नाव में।