भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत / शकुन्त माथुर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:28, 2 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शकुन्त माथुर |संग्रह=लहर नहीं टूटेगी / शकुन्त म…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बुझा-बुझा गीत
सारा कुछ शीत
उलट गई सारी
बाँसुरी की रीत

बीत गई रैन
न निकल सके बैन
बँधे रुके
रोते रहे नैन
दुख न बँटा अपना
टूट गया सपना

थकी-थकी प्रीत
धोखा हुआ मीत
चाँदों में
तारों में
चलती राहों में
थकना ही थकना!