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गीत 10 / चौदहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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जे जन द्रष्टा भाव रखी, तीनों गुण से उबरै छै
एकी भाव रखी केॅ परमेश्वर के नित सुमरै छै।
रहै निरन्तर आतम भाव में
दुख-सुख के सम जानै,
मिट्टी-पत्थर और स्वर्ण के
एक भाव पहचानै,
शुभ अरु अशुभ एक सन मानै, भेद न मन उपजै छै।
निन्दा और प्रशंसा दोनों
एक रंग जे मानै,
मान और अपमान भाव
तनियों नै मन में आनै,
उत्तम मध्यम नीच न जानै, सब के सम समझै छै।
जग में कोनोॅ अपन आन नै
सब समान सन लागै,
रहै देह में भी विदेह सन
ब्रह्म भाव जब जागै,
सब इन्द्रिय के जे समेट केॅ, अन्तः में उतरै छै
जे जन द्रष्टा भाव रखी, तीनों गुण से उबरै छै।