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गीत 10 / छठा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

शुद्ध बुद्धि से ग्रहण लायक परम आनन्द छै
सिद्ध योगी जन सदा पावैत परमानन्द छै।
लाभ नै ईश्वर के पावै से
अधिक संसार में,
हर हमेशा एक ईश्वर
कर्म और विचार में,
सिद्ध जन लेॅ भोग-सुख के द्वार सब टा बन्द छै।
ब्रह्म पूरण काम
सब टा काम नासै दुख हरै,
और योगारूढ़ जन के
हर घड़ी रक्षा करै,
सिद्ध योगी आप काटै हय जगत के फंद छै।
दुःख रूपी हय जगत से
जे रखै संयोग नै,
से कहावै सिद्ध योगी
चित धरै दुख रोग नै,
धैर्य अरु उत्साह चित में, लेश भर नै द्वंद्व छै।
जे अटल संकल्प बाँधी केॅ
अपन करतब करै,
व्यर्थ के दुख रूप जग से
बान्हीं नै रिश्ता धरै,
एक बस परमात्मा से ही अटल संबंध छै
शुद्ध बुद्धि से ग्रहण लायक परम आनन्द छै।