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गीत 10 / दशम अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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वृष्णि वंश में वासुदेव हम
अरु पाण्डव में छी अर्जुन हम।

पुरुष प्रभावी के प्रभाव हम, छल में हम जूआ छी
जीतै वाला के जय, निश्चय वाला के निश्चय छी
सात्विक के सात्विकता हम छी
मुनि जन मंे छी वेद व्यास हम।

कवि में शुक्राचार्य महाकवि, हम पण्डित, हम ज्ञानी
दमन करै में दण्ड शक्ति, जेकरा से संयत प्राणी
जितनिहार में नीति छिकौं अरु
गुप्त भाव मंे मौन छिकौं हम।

ज्ञानी जन के तत्त्व ज्ञान हम छी, सब से उत्तम छी
सब भूतौ के उत्पन्न कर्ता, परमाधार हम्हीं छी
जग में जे चर-अचर जीव छै
सब के अन्दर व्याप्त एक हम।

हमरोॅ दिव्य विभूति के नै अंत कहीं तों जानोॅ
जे विभूति विस्तारि कहलियोॅ ओकरो क्षेपक मानोॅ।

हर अणु परमाणु में छै
हमरोॅ विभूति अनुमानोॅ
कान्ति युक्त, ऐश्वर्य युक्त
अरु शक्ति युक्त पहचानोॅ,
के जानत विस्तारि बखानत, अंत हमर नै मानोॅ।

हे अर्जुन, अब बहुत जानि केॅ भी
तोहें की करवै,
हम छी एक अनन्त समुन्दर
केतना दूर उतरवै,
हमरोॅ अंश मात्र से उपजल हय जग छिक है मानोॅ।

तोहें जे पुछलेॅ, ओकरा मंे
मुख्खे-मुखखे कहलियोॅ,
सहज समझ से परे रहै जे
से सब कहॉ कहलियोॅ?
सार-सार बातौ के तों विस्तार करी अनुमानोॅ
हमरोॅ दिव्य विभूति के नै अंत कहीं तों जानोॅ।