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गीत 11 / तेरहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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अर्जुन, से न देह धरि आवै
जे गुण सहित प्रकृति के जानै, तत्त्व ज्ञान अपनावै।

तीनों गुण निसर्ग से उत्पन्न, उनके सकल पसारल
नाशवान-जड़-क्षणभंगुर जग, उनके जग विस्तारल
परम तत्त्व जीव जब जानै, बन्धन सकल दुरावै
अर्जुन, से न देह धरि आवै।

कुछ तेॅ शुद्ध-सूक्ष्म बुद्धि से, नित्य ध्यान के धारै
आरो अपनोॅ इष्ट देव के हिय में आप उतारै
आरो कुछ तेॅ ज्ञान योग से परमेश्वर के पावै
अर्जुन, से न देह धरि आवै।
कुछ मनुष्य तेॅ शुद्ध हृदय से, कर्मयोग अपनावै
सत्-असत्य के करि विवेचना, आगू पाँव बढ़ावै
काटै सहज असत के बन्धन, तब विराग के पावै
अर्जुन, से न देह धरि आवै।

मन के राखै निश्चल-निश्छल, शान्त भाव के धारै
नित इन्द्रिय पर रखय नियंत्रण, सब टा विषय बिसारै
त्यागि भोग चित रखै जोग में, सहजें द्वन्द्व दुरावै
अर्जुन, से न देह धरि आवै।

मान-अनादर, हानि-लाभ, दुख-सुख के जे सम जानै
दृढ़ मन से आतमा सत्ता के जे प्रत्यक्ष पहचानै
मन-बुद्धि-चित के समेट केॅ, जे अर्पित करि पावै
अर्जुन, से न देह धरि आवै।