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गीत 12 / तेरहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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श्रवण परायण पुरुष तत्त्व के सुनि-समझै भव पार करै
मन बुद्धि वाला भी सुनि केॅ, अपनोॅ बेरा पार करै।
क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ से उत्पन्न
सब जड़ जंगम जानोॅ,
नाशवान जीवोॅ में
ईश्वर के अविनाशी मानोॅ,
जे घट-घट में देखै ईश्वर, से अपनोॅ विस्तार करै।
नाशवान छै देह
आतमा छै से अविनाशी छै,
निर्विकार चैतन्य रूप
सब के उर-पुर वासी छै,
जे सब में समान देखै छै, से अपनोॅ उपकार करै।
जे सब जग सम-भाव से देखै
से नै खुद के नासै,
जनम-मरण के बन्धन काटै
खुद के सदा प्रकाशै,
भिन्न न समझै खुद के, परमेश्वर में एकाकार करै
श्रवण परायण पुरुष तत्त्व के सुनि समझै भव पार करै।