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गीत 13 / तेरहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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अर्जुन, वहेॅ सत्य देखै छै
जे सम्पूर्ण कर्म के करतें प्रकृति के देखै छै।
वहेॅ आतमा के देखेॅ पावै छै बनल अकर्ता
जे इन्द्रिय के नै, प्रकृति के देखै बनलौ कर्ता
मन-बुद्धि अरु तन से पृथक आतमा जे देखै छै
अर्जुन, वहेॅ सत्य देखै छै।
जे क्षण मानव पूर्ण जगत के ईश्वर में देखै छै
जे ईश्वर से ही जग के विस्तार छिकै मानै छै
से क्षण ही ऊ हमरा पावै, ब्रह्म के जब समझै छै
अर्जुन, वहेॅ सत्य देखै छै।
जैसे प्राणी सपना में जे वस्तु-व्यक्ति देखै छै
सब अपने से निकलल, अपने में सिमटल पावै छै
ज्ञानी अपन स्वप्न मिथ्या से, जग मिथ्या समझै छै
अर्जुन, वहेॅ सत्य देखै छै।