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गीत 14 / तेरहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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हरि अनादि अविनाशी निर्गुण, हर तन में जे वास करै
तन में बनि केॅ रहै अकर्ता, नै मन पर विश्वास करै।

सब दिश व्यापित व्योम जेना
नै एक तत्त्व से मोह रखै,
वैसें तन के बीच आतमा
नै इन्द्रिय से मोह रखै,
मन-बुद्धि-इन्द्रिय के सँग आतमा न कभी विलास करै।

जैसे एक सूर्य से छै
पूरे ब्रह्मांड प्रकाशित,
वैसें एक आतमा से छै
सकल अंक उद्भाषित,
सदा-सर्वदा शुद्ध आतमा, तन के सतत विकास करै।

हय प्रकार से क्षेत्र और
क्षेत्रज्ञ के जे जाने छै,
कारण रहित, प्रकृति से हमरा
मुक्त सदा मानै छै,
ज्ञान नेत्र से तत्त्व के जानै, आतम तत्त्व प्रकाश करै
हरि अनादि अविनाशी निर्गुण, हर तन में जे वास करै।