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गीत 15 / प्रशान्त मिश्रा 'मन'

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मात्र हमारा प्रेम सत्य है।
लय है हम दोनों के सुर में
और अलय तो भ्रम है मन का।
तुम हो हम हैं ये जीवन है।
और प्रेम का इक बन्धन है।
जिसको हम दोनों ने जीया
वो तन-मन का मधुर मिलन है।
कुछ तो है संबन्ध प्रेम में
जैसे बूंदो का औ घन का।
इक दूजे की पीर टटोलें।
मौन रहें नैनों से बोलें।
जिससे प्रेम मुखर हो जाए-
आओ ! दृग जल से मुख धो लें।
फिर सोचेंगे क्या बंधन है.?
इस जीवन से उस जीवन का।
तुमने मन में प्रेम जगाया।
हमको अपने गले लगाया।
भँवरों जैसे अधरपान का
तुमने मधुरिम स्वप्न दिखाया।
वृहत अर्थ, निःस्वार्थ प्रेम है
सार यही इस प्रणय-मिलन का।