भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत 17 / ग्यारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अर्जुन, हमरोॅ दरस असम्भव
नै तीरथ-वैरागण करनें हमरोॅ दर्शन सम्भव।

नै सम्भव छै यग करै से, अरु नै वेद पढ़ै सें
नै सम्भव छै दान क्रिया से, तप में नित्य तपै सें
तोरा छोड़ि केॅ देख सकै हमरा, ई नै छै सम्भव
अर्जुन, हमरोॅ दरस असम्भव।

तों हमरोॅ विकराल रूप देखी केॅ नैं घबरावोॅ
तों ज्ञानी छेॅ हे अर्जुन, नै मूढ़ के पावोॅ
तों निर्भय प्रसन्न मन वाला, तोरा लै सब सम्भव
अर्जुन, हमरोॅ दरस असम्भव।

संजय उवाच-

कृष्ण सखा के कहल मानि केॅ रूप चतुर्भुज धैलन
रूप चतुर्भुज महाराज के संजय पुनः सुनैलन
सौम्य रूप के दरस भेल अर्जुन के खातिर सम्भव
राजन, कुछ नै रहल असम्भव।