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गीत 18 / अठारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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सात्विक धृति अव्यभिचारिणी करै मनुष जे धारण
ध्यान योग इन्द्रिय दोष के सहजें करै निवारण।
अटल भाव से मन इन्द्रिय अरु
प्राण रोकि जे पावै,
ध्यान योग के अटल क्रिया
हे पार्थ धृति कहलावै,
धृति सात्विकी ही छिक परमेश्वर पावै के कारण।
जे फल के इच्छा राखी
मनुष्य धृति के धारै,
आसक्ति राखि धर्म-अर्थ अरु
काम-कर्म सहियारै,
अपन मोक्ष आप जे नासै, करि राजस गुण धारण।
दृष्ट बुद्धि वाला मनुष्य
निन्द्रा-भय-चिन्ता धारै,
जे मनुष्य दुर्बुद्धि राखि के
अनकर अहित बिचारै,
उन्मत वृति विनासै संयम, सिरजै वैर अकारण
ध्यान योग इन्द्रिय दोष के सहजे करै निवारण।