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गीत 1 / अठारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

अर्जुन उवाच-

कहलन अर्जुन, अन्तर्यामी-वासुदेव बतलावोॅ
कृपा करी सन्यास-त्याग के पृथक-पृथक समझावोॅ।

महाबाहु हे हृषीकेश
हे सर्वशक्ति परमेश्वर,
ज्ञान योग अरु सांख्य योग में
फरक करौ हे ईश्वर,
कर्म योग-साधन-प्रकार के फरक करी बतलावोॅ।

भगती मिश्रित कर्म योग के
कैसें हम पहचानौं?
आरो भक्ति प्रधान कर्म के
की स्वरूप हम जानौं?
लौकिक-वेदविदित कर्मो में की अन्तर? बतलावोॅ।

श्री भगवान उवाच-

कहलन श्री भगवान
पार्थ, तों कर्मरूप के जानोॅ,
काम्य-कर्म के की स्वरूप छै?
तों एकरा पहचानोॅ,
पंडित एकरे परित्याग, सन्यास कहै पतियावोॅ।

शास्त्र विदित कर्तव्य कर्म से
जीव सदा निमहै छै,
और कर्मफल के त्यागै के
चिन्तक त्याग करै छै,
लौकिक-परलौकिक सुख के चक्कर में नै तों आवोॅ
हे अर्जुन, हे पाथ, धनंजय, ज्ञान अलौकिक पावोॅ।