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गीत 1 / चौदहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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श्री भगवान उवाच-
हे अर्जुन, ज्ञानों में तोरा उत्तम ज्ञान सुनैवोॅ।
जेकरा सुनि मुनि मुक्त हुऐ, पुनि सिद्ध हुऐ बतलैवोॅ।
जेकरा धारण करि केॅ प्राणी
हमर रूप छै धरै,
जेकरा धारण करि केॅ प्राणी
पुनर्जन्म नै धारै,
प्रलय काल में नै अकुलावै, से रहस्य बतलैवोॅ।
महत ब्रह्म छिक मूल प्रकृति
सम्पूर्ण जगत के योनी,
वहाँ गर्भ में हम चेतन
प्रकटै छी बनि केॅ होनी,
जड़-चेतन संयोग करी, सम्पूर्ण भूत उपजैवोॅ।
जे योनी में देह धरै
प्रकृति उनकर माता छै,
बीज रूप हम पिता कहावौं
जग से हय नाता छै,
हय चौरासी लाख सृजन हमरे छिक कहि समझैवोॅ
हे अर्जुन, ज्ञानों में तोरा उत्तम ज्ञान सुनैवोॅ।